रामायणाची आरती
आरती रामायण ग्रंथा जानकी जीवन रघुनाथा !ध्रु!
आरंभी बालकाण्ड रचना| वाल्मिकी कथीली असे सूचना| कोटी शतग्रंथ विवेक भरणा| वर्णिता शक्ती नसे कवना|
कथेची पुढे कैसी प्रौढी |
कथेची पुढे कैसी प्रौढी|
राक्षस जलन | दशरथ लग्न| राम अवतरण| वाशिष्ठा शरण राम रीघता| पावला पूर्ण ज्ञानसरिता||१||
पर्णीली सिता चिदशक्ती| पुढे योजिली राज युक्ती|
विकल्पे करू कैकयी माता|बुद्धी भ्रव शली दशरथा|
पितृ आज्ञेने रघुनाथा |
पितृ आज्ञेने रघुनाथा|
निघे कानना |दुष्ट मर्दना| सुखी सज्जना |करोनी निष्कंटकपंथा |पंचवटी वस्तीकरी स्वस्था||२||
मर्दीली स्वरूप शूर्पणखा | विटंबोनी पाठविली लंका|
मारुनी खर दुषण आणिका|वधूनी विजयी रामसखा|
देखता भगिनी रूपाला|
देखता भगिनी रूपाला|
शत्रूचा उदयी| दचकला हृदयी| रावणी विट मानुनी चित्ता|
म्हणे जानकी आणीन मी आता||3||
कपट मृग मातुल मायावी| निघे घेऊन मयजावई |
राम मग मृग वधावया जाई| रावणाने सीतानेली लवलाही|
पळे घेऊनी तस्कर जैसा |
पळे घेवोनी तस्कर जैसा|
मानी मनीहर्ष |करूपाहे स्पर्श|चापभय हर्ष|
निराशा मानोनीया चित्ता|अशोकवणी ठेवी जनकदुहिता||4||
राम विद्वांस गुफापाहि|वनामध्ये सिता सिता बाहे|
शिळा दृम उद्धरित जाई|शक्र सूत वधीला लवलाही|
मित्र सुत मित्र जोडीयेला|
मित्र सुत मित्र जोडीयेला|
सीतेची शुद्धी करूनी महा बुद्धी|राक्षसा वधी| साह्यकरुनी सैन्य सरिता|वदे रामाशी शुभ वार्ता ||5||
तयारी करी राम राणा |सुग्रीवे सिद्ध करुनी सेना|
ऐकता उठला वीरभर्णा|वधावया रावण कुंभकर्ण|
दशयोजने वानर सेना |
दशयोजने |वानर सेना|
करती भुभू: कार| समुद्रापार|जावया शिळा सेतू करिता|पावले राम सुवेळा आता||6||
अंगदे केली शिष्टाई|न मानीच रावण तीळराई|
देखता राम चमु पाही|घातला घाला ते समयी|
रावनेसिद्ध करूनी सेना |
रावनेसिद्ध करूनी सेना|
आला रणरंगी|वीरश्री अंगी|तरुवर भंगी|शेवटी रावण देह हंता|
राम सर्वांची करी तृप्ता ||7||
मुक्त सूरवर करून सिता|भेटला राम भरतभक्ता|
सुखावे गुरु विप्र सरिता|पावला राजासन सत्ता|
आनंदे कौशल्यामाता|
आनंदेकौशल्यामाता|
वाटला आनंद बहुचित्ता|प्रभू मल्लेश्वर गुण गाता||8||
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