गुरुवार, 8 मार्च 2012

जब यही जीना है तो फ़िर मरना क्या है


शहरकी इस दौडमे दौडके करना क्या है.
जब यही जीना है तो फ़िर मरना क्या है

कब डूबते हुए सुरजको देखा था याद है

कब जाना था शामका गुजरना क्या है.
मोबाइल landलाईन सब की भरमार है

लेकिन जिग्री दोस्तोतक पहुंचे ऎसी तार कहा है
इंटरनेटसे दुनियाकेतॊ टच मे हैलेकिन  पडोसमे कौन आया है जानते तक नही

अब रेतपे नंगे पाव टहलते क्युं नही
१०८है च्यानल फ़िर दिल बहलते क्यू. नही

सिरियलके किरदारोका सारा हाल है मालुम
पर मा का हाल पुछनेकी फ़ुरसत कहा है

पहली बारीश मे ट्रेन लेट होनेका डर है
भूल गये भीगते हुए टहलना क्या है


जगनं इतकं रटाळ का झालंय या पिढीचं व त्याला काही पर्याय नाहीच कि काय अशी परिस्थिती आहे.
असह्य जगणं सुसह्य करू या. चला आजपासून नवा श्वास घेवू या.

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